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Showing posts from May, 2018

मेरे आईने के अलावा, मुझे जानता कौन था?

तेरी बेवफ़ाई ने मुझे मशहूर कर दिया... वरना मेरे आईने के अलावा, मुझे जानता कौन था?

इश्क़- विश्क का खेल है ऐसा...

इश्क़-विश्क का खेल है ऐसा दिल अपना दिल चुन लेगा तुम आँखों से भी बोलोगी तो वो आँखों से ही सुन लेगा तोल-मोल का भाव ना इसमे ना कोई क़ीमत इसकी सात रंग की इस दुनिया में रंग अपना वो चुन लेगा धर्म ना इसका, जाति ना इसकी ना कोई भाषा बोली मिल जाए इश्क़ का मेल है जिससे संग उसी के ये होली ढीठ बहुत है इश्क़ है ये करता अपनी ही मनमानी जान जाए...पर वचन ना जाए यही इश्क़ की ज़ुबानी....

तो फिर कौन...?, तुम जैसा मेरे संग रहने लगा है...

ले जाओ, अगर ले जा सकते हो अपने अहसासों की गठरी को तेरे जाने के बाद, ज़िंदगी का बोझ बढ़ने लगा है गूँजती है कमरे के हर कोने में तेरी बातें मैं चुप हूँ...तो भी लगता है कोई सुनने लगा है बदली है कई बार रंग मैंने दीवारों की मगर तेरा साया अँधरे में भी दिखने लगा है जो तुम जा चुकी हो सब छोड़ छाड़ कर तो फिर कौन....? तुम जैसा मेरे संग रहने लगा है