ले जाओ, अगर ले जा सकते हो अपने अहसासों की गठरी को तेरे जाने के बाद, ज़िंदगी का बोझ बढ़ने लगा है गूँजती है कमरे के हर कोने में तेरी बातें मैं चुप हूँ...तो भी लगता है कोई सुनने लगा है बदली है कई बार रंग मैंने दीवारों की मगर तेरा साया अँधरे में भी दिखने लगा है जो तुम जा चुकी हो सब छोड़ छाड़ कर तो फिर कौन....? तुम जैसा मेरे संग रहने लगा है